दलहनों में अत्मनिर्भरता का लक्ष्य दूर

18-Oct-2025 01:26 PM

दलहनों में अत्मनिर्भरता का लक्ष्य दूर

केन्द्र सरकार भारत को दलहनों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए निरंतर प्रयास कर रही  है लेकिन उसकी कुछ नीतियां ही इस प्रयास की सफलता के मार्ग अवरोधक बनी हुई हैं। अब एक बार फिर इस दिशा में ठोस कदम उठाने का निर्णय लिया गया है और दलहनों में आत्मनिर्भरता के लिए एक मिशन की शुरुआत की गई है। इस मिशन के लिए 11,440 करोड़ रुपए की धनराशि आवंटित की गई है। सरकार ने अगले 6 वर्षों में यानी 2030-31 तक दलहन फसलों का बिजाई क्षेत्र 275 लाख हेक्टेयर के वर्तमान स्तर से 35 लाख हेक्टेयर बढ़ाकर 310 लाख हेक्टेयर पर पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसी तरह दलहन फसलों की औसत उत्पादकता दर को बढ़ाकर 1130 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर तथा कुल पैदावार को बढ़ाकर 350 लाख टन पर पहुंचाने का लक्ष्य नियत किया गया है। देश के 416 जिलों में दलहनों का रकबा एवं उत्पादन बढ़ाने पर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित किया जाएगा। ध्यान देने वाली बात है की पिछले चार वर्षों के दौरान दलहनों के बिजाई क्षेत्र में करीब 31 लाख हेक्टेयर की भारी कमी आ चुकी है। क्षेत्रफल में आई इस गिरावट का कारण समझना कोई मुश्किल काम नहीं है। किसानों को उसके उत्पादों का लाभप्रद मूल्य प्राप्त नहीं हो रहा है जिससे दलहनों की खेती के प्रति उसका उत्साह एवं आकर्षण घटता जा रहा है। सरकार को सर्वप्रथम किसानों का मनोबल बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाना पड़ेगा और उत्पादकों को यह विश्वास दिलाना होगा कि उसके उत्पाद की खरीद लाभप्रद मूल्य पर सुनिश्चित की जाएगी। बेशक सरकार प्रतिवर्ष खरीफ एवं रबी सीजन की दलहन फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में अच्छी वृद्धि करती है और उसने तुवर, उड़द एवं मसूर की शत-प्रतिशत खरीद की घोषणा भी कर रखी है मगर फिर भी किसानों को कई बार अपना उत्पाद बेचने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। 

दलहनों का विशाल आयात एक गंभीर संकट का रूप ले चुका है। पिछले वित्त वर्ष के दौरान यह आयात 73.40 लाख टन के सर्वकालीन सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया था जिससे घरेलू बाजार में आपूर्ति एवं उपलब्धता इसकी ज्यादा बढ़ गई कि प्रमुख दलहनों का भाव घटकर न्यूनतम समर्थन मूल्य के आसपास आ गया। इससे किसानों को आकर्षक आमदनी मिलनी बंद हो गई और इसलिए खरीफ सीजन में दलहनों का बिजाई क्षेत्र बड़ी मुश्किल से कुछ बढ़ सका। अब रबी सीजन की बारी है। पीली मटर, तुवर एवं उड़द का शुल्क मुक्त आयात जारी है जबकि मसूर एवं चना पर महज 10-10 प्रतिशत का सीमा शुल्क लागू है। इस शुल्क नीति की संरचना में बदलाव की सख्त आवश्यकता है।