घरेलू उत्पादन में वृद्धि के बावजूद दलहनों का रिकॉर्ड आयात

23-Jun-2025 04:43 PM

नई दिल्ली। वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान देश में दलहनों का आयात बढ़कर नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। इसकी मात्रा तथा उस पर खर्च होने वाली राशि- दोनों ही बढ़कर शीर्ष स्तर पर पहुंच गई।

यह स्थिति तब हुई जब केन्द्रीय कृषि मंत्रालय ने दावा किया कि वर्ष 2014-15 से 2024-25 के बीच की अवधि के दौरान दलहनों का घरेलू उत्पादन 47 प्रतिशत बढ़ा जबकि 2004-05 से 2014-15 के दशक में दलहनों के उत्पादन में 31 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। 

दलहनों के आयात का खर्च तेजी से उछलकर 5 अरब डॉलर से काफी आगे निकल गया जो सरकार के लिए गंभीर चिंता का विषय है। खाद्य तेल की भांति दलहनों के आयात पर भी देश की निर्भरता बढ़ती जा रही है।

स्वयं सरकार ही दलहनों के आयात को प्रोत्साहित कर रही है जिसका प्रमाण यह है कि उसने तुवर, उड़द एवं पीली मटर के आयात को 31 मार्च 2026 तक के लिए शुल्क कर दिया है और देसी चना तथा मसूर पर भी केवल 10 प्रतिशत का मामूली सीमा शुल्क लगाया है।

हालांकि सरकार ने 2027-28 तक देश को दलहनों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य रखा है मगर मौजूदा हालात को देखते हुए यह लक्ष्य बहुत दूर नजर आता है। 

संसदीय स्थायी समिति ने धान एवं गेहूं के बदले दलहन-तिलहन की खेती बढ़ाने के लिए किसानों को समुचित प्रोत्साहन देने का सुझाव दिया है।

अब कृषि मंत्रालय ने कहा है कि वर्ष 2030-31 तक दलहन-तिलहन से उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए एक रोडमैप तैयार किया जा रहा है। मंत्रालय के अनुसार दलहनों का उत्पादन बढ़ाने के रास्ते में कई चुनौतियां एवं समस्याए बाधा बन रही है।

पहली बात तो यह है कि 75 प्रतिशत दलहनों का उत्पादन वर्षा पर आश्रित क्षेत्रों में होता है और कम उपजाऊ जमीन में इसकी खेती की जाती है जिससे फसल की औसत उपज दर नीचे रहती है।

इसके अलावा छोटे एवं सीमांत किसान ही दलहनों की खेती में अब तक ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे हैं। भारत दुनिया में दलहन का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और आयातक देश बना हुआ है। दलहनों में आत्मनिभर्रता हासिल होना बेहद आवश्यक है।