खरीफकालीन तिलहनों के बिजाई क्षेत्र में ज्यादा बढ़ोत्तरी होने में संदेह
27-Jun-2025 01:23 PM

नई दिल्ली। खाद्य तेल-तिलहनों का भाव नरम रहने तथा अन्य वैकल्पिक फसलों और खासकर मक्का से ज्यादा कमाई की उम्मीद होने के कारण ख्रीफ्कालीन तिलहन फसलों की खेती के प्रति किसानों अक रुझान घटने की आशंका है। कई इलाकों में किसान सोयाबीन एवं मूंगफली के बजाए मक्का की खेती को प्राथमिकता दे रहे हैं। तिलहनों के बिजाई क्षेत्र एवं उत्पादन घटने पर विदेशी खाद्य तेलों के आयात पर भारत के भारी निर्भरता बरकरार रह सकती है। ज्ञात हो कि भारत दुनिया में खाद्य तेलों अक सबसे बड़ा आयातक देश है और अपनी घरेलू जरुरत के लगभग 60 प्रतिशत खाद्य तेल का आयात विदेशों से कट्टा है जिसमें पाम तेल, सोया तेल एवं सूरजमुखी तेल शामिल है।
वरिष्ठ आधिकारिक सूत्रों के अनुसार इस बार किसानों द्वारा सोयाबीन के बजाए मक्का के उत्पादन पर विशेष ध्यान दी जाने के संकेत मिल रहे हैं क्योंकि उन्हें सोयाबीन का आकर्षक एवं लाभप्रद मूल्य हासिल नहीं हो रहा है। दूसरी ओर एथनोल निर्माण में खपत तेजी से बढ़ने के कारण मक्का का भाव ऊंचे स्तर पर मजबूत बना हुआ है।
2024-25 के खरीफ मार्केटिंग सीजन के दौरान केंद्र सरकार द्वारा किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सोयाबीन एवं मूंगफली की रिकॉर्ड खरीद की गयी लेकिन इसके बावजूद थोक मंडी भाव में तेजी नहीं आ सकी। अब सरकार ने अपने स्टॉक को वापस मंडियों में उतारना शुरू कर दिया है। इसे सोयाबीन की उपलब्धता बढ़ने लगी है। यद्यपि सरकार ने सोयाबीन का एमएसपी 4892 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया था मगर अक्टूबर 2024 में नया मार्केटिंग सीजन आरम्भ होने के बाद से ही थोक मंडी भाव एमएसपी से 10 से 20 प्रतिशत तक नीचे चल रहा है।
हालाँकि पिछले साल के मुकाबले चालू वर्ष के दौरान खाद्य तेलों का घरेलू बाजार भाव ऊंचा चल रह है लेकिन फिर भी सोयाबीन की कीमतों में कोई ख़ास उतार-चढ़ाव नहीं देखा जा रहा है क्योंकि सोयामील का भाव नरम रहने से मिलर्स की आमदनी घट गयी है। सरकारी खरीद भी बहुत देर से आरंभ होती है। अगर इसे जल्दी शुरू किया जाए तो किसानों को अच्छा प्रोत्साहन मिल सकता है। सोयाबीन का बिजाई क्षेत्र गत वर्ष से 2 प्रतिशत पीछे चल रहा है। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं राजस्थान जैसे शीर्ष उत्पादक प्रान्तों में सोयाबीन की बिजाई पर विशेष नजर रखी जा रही है।