प्रमुख उत्पादक राज्यों में अत्यधिक बारिश से दलहनों की बिजाई प्रभावित
06-Aug-2025 08:55 PM

नई दिल्ली। पिछले साल की तुलना में चालू खरीफ सीजन के दौरान अनेक कारणों से दलहन फसलों के बिजाई क्षेत्र में कमी आई है और बिजाई की रफ्तार भी अब सुस्त पड़ गई है।
दरअसल एक तो विदेशों से तुवर एवं उड़द का नियंत्रण मुक्त आयात हो रहा है और घरेलू प्रभाग में इसकी आपूर्ति तथा उपलब्धता बढ़ने से कीमतों में नरमी या स्थिरता का माहौल बना हुआ है
और दूसरे, जिन इलाकों में बिजाई होनी बाकी थी वहां मूसलाधार वर्षा के कारण खेतों में या तो पानी भर गया या फिर नमी का अंश जरूरत से ज्यादा बढ़ गया। राजस्थान और मध्य प्रदेश में दलहनों की बिजाई काफी जोर शोर से आरंभ हुई थी
और ऐसा लग रहा था कि क्षेत्रफल गत वर्ष से काफी आगे निकल जाएगा मगर बाद में इसके रकबे में काफी हद तक ठहराव आ गया और राष्ट्रीय स्तर पर दोनों प्रमुख दलहनों- तुवर एवं उड़द का क्षेत्रफल घटकर गत वर्ष से नीचे आ। कर्नाटक में कहीं-कहीं तुवर की बिजाई अभी जारी है।
दलहनों का कुल उत्पादन क्षेत्र 101.20 लाख हेक्टेयर पर पहुंचा है जो गत वर्ष के 101.50 लाख हेक्टेयर से 30 हेक्टेयर कम तथा सामान्य औसत क्षेत्रफल 129.60 लाख हेक्टेयर से 28.40 लाख हेक्टेयर पीछे है।
इतने लम्बे अंतर को पाटना आसान नहीं होगा क्योंकि बिजाई के लिए अब समय कम रह गया है और उत्पादक क्षेत्रों में खेतों की हालत भी बिजाई के लिए अनुकूल नहीं है।
यद्यपि गत वर्ष की तुलना इस बारे दलहनों का उत्पादन क्षेत्र ज्यादा पीछे नहीं है मगर यह ध्यान रखना आवश्यक है कि पिछले साल अगस्त के महीने में बिजाई के लिए परिस्तिथियां काफी हद तक अनुकूल रही थीं।
तुवर की खेती के प्रति किसानों का घटता उत्साह चिंताजनक है क्योंकि यह खरीफ सीजन की सबसे प्रमुख दलहन फसल है। म्यांमार एवं अफ्रीकी देशों से भारी मात्रा में इसका सस्ता आयात जारी रहने से घरेलू बाजार भाव पर दबाव बढ़ गया।
म्यांमार में तो तुवर का नया माल काफी पहले से आ रहा है जबकि अब अफ्रीकी देशों में भी नई फसल की कटाई-तैयारी का समय आ गया है। म्यांमार से उड़द का भी विशाल आयात हो रहा है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार तुवर का उत्पादन क्षेत्र 41.10 लाख हेक्टेयर से घटाकर 38.30 लाख हेक्टेयर तथा उड़द का बिजाई क्षेत्र 19.10 लाख हेक्टेयर से गिरकर 18.60 लाख हेक्टेयर रह गया।
देश में मूंग का आयात नहीं होता है और दलहन फसलों में इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य भी सबसे ऊंचा है इसलिए इसकी खेती में भारतीय किसानों की दिलचस्पी बरकरार है। राजस्थान में मूंग का रकबा गत वर्ष से आगे है।