खाद्य तेलों के आयात पर बढ़ते खर्च को नियंत्रित करना आवश्यक
23-Jun-2025 04:08 PM

नई दिल्ली। केन्द्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों से ज्ञात होता है कि पिछले एक दशक के दौरान सरसों, सोयाबीन एवं मूंगफली जैसी प्रमुख तिलहन फसलों के घरेलू उत्पादन में जोरदार वृद्धि हुई है और तिलहनों का कुल उत्पादन भी 2014-15 से 2024-25 के बीच 55 प्रतिशत बढ़ा है।
दूसरी ओर वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि इसी अवधि के दौरान खाद्य तेलों के आयात में भी जबरदस्त इजाफा हुआ और इस पर खर्च होने वाली राशि बढ़कर 80,000 करोड़ रुपए से भी ऊपर पहुंच गई।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2023-24 के दौरान देश में 156.60 लाख टन खाद्य तेल का आयात हुआ जो कुल घरेलू मांग का 56 प्रतिशत था।
खाद्य तेलों के आयात की मात्रा एवं इस पर खर्च होने वाली राशि में इतनी जबरदस्त वृद्धि हुई है कि स्वयं प्रधानमंत्री को 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर देश के लोगों से अपने भोजन में खाद्य तेल की मात्रा 10 प्रतिशत घटाने की अपील करनी पड़ी।
दरअसल सस्ते खाद्य तेलों की पर्याप्त आपूर्ति एवं उपलब्धता के कारण इसकी प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक खपत बढ़कर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित स्तर से बहुत ऊपर पहुंच गई है और इससे मोटापे की समस्या गंभीर होती जा रही है।
कृषि मंत्रालय का कहना है कि सरकार देश को तिलहन-तेल उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर बनाने का हर संभव प्रयास कर रही है और इसके लिए अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
विश्लेषकों के अनुसार जनसंख्या बढ़ने तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होने के कारण देश में खाद्य तेलों की मांग एवं खपत तेजी से बढ़ती जा रही है जबकि उसके मुकाबले तिलहनों की पैदावार में अपेक्षित बढ़ोत्तरी नहीं हो रही है।
कृषि मंत्रालय के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार 2024-25 सीजन के दौरान देश में 426.09 लाख टन तिलहनों का उत्पादन हुआ।