खाद्यान्न उत्पादन में बढ़ोत्तरी की रफ्तार धीमी

08-Jul-2025 04:02 PM

नई दिल्ली। कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्रों से प्राप्त उत्पादन के मूल्य पर हाल ही में प्रचलित सांख्यिकी रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्ष 2011-12 से लेकर 2023-24 के दौरान परम्परागत फसलों के मुकाबले किसान ऊंची कीमत वाली फसलों की तरफ ज्यादा आकर्षित हुए और उसका ध्यान पशु पालन तथा मत्सय  पालन जैसे क्षेत्रों पर भी केन्द्रित रहा। 

इसमें कोई संदेह नहीं कि अनाज अब भी रीढ़ की हड्डी बना हुआ है। खाद्यान्न के सकल उत्पादन में धान  का योगदान इस अवधि में 50.6 प्रतिशत से बढ़कर 52.6 प्रतिशत पर पहुंच गया लेकिन गेहूं की भागीदारी 35 प्रतिशत से गिरकर 33 प्रतिशत रह गई है।

2020-21 के बाद इसके योगदान में ज्यादा कमी आई है। मक्का के योगदान में इजाफा हुआ और यह 7.7 प्रतिशत से बढ़कर 9.3 प्रतिशत पर पहुंच गया।

सीड निर्माण एवं औद्योगिक उपयोग में इसकी खपत तेजी से बढ़ रही है। ज्वार, बाजरा एवं रागी जैसे मोटे अनाजों की भागीदारी अपेक्षाकृत कम रहती है।

ज्वार एवं रागी का योगदान घट रहा है जबकि बाजार की कीमतों में उतार-चढ़ाव का माहौल बना हुआ है। स्मॉल मिलेट्स एवं अन्य अनाजों का योगदान ज्यादा प्रभावी नहीं रहा। 

दलहन के संवर्ग में चना का योगदान इस अवधि में शीर्ष स्तर पर बरकरार रहा मगर इसके उत्पादन में उतार-चढ़ाव देखा गया। इसके फलस्वरूप कुछ दलहन उत्पादन में चना की भागीदारी 46 प्रतिशत से घटकर 42.7 प्रतिशत रह गई।

इसी तरह अरहर (तुवर) का योगदान 2016-17 में 23.1 प्रतिशत के  पहुंचने के बाद 2023-24 के सीजन में घटकर 15.6 प्रतिशत रह गया मूंग की भागीदारी बढ़ती रही जबकि उड़द की हिस्सेदारी स्थिर रही।

मसूर में मामूली बढ़ोत्तरी हुई। इसके अलावा खेसारी मोठ, राजमा, कुलथी एवं लोबिया जैसे माइनर दलहनों की भागीदारी कम रही लेकिन धीरे-धीरे इसमें सुधार देखा गया।