उत्तरी भारत के बाद अब दक्षिणी राज्यों में भी कपास की फसल पर कीट का प्रकोप
25-Aug-2025 07:18 PM

विशाखापटनम। उत्तरी भारत में कपास की फसल पर रोगों-कीड़ों का प्रकोप पहले से ही बना हुआ है जबकि अब दक्षिण भारत में भी इसका असर दिखाई पड़ने लगा है। मौसम की हालत असामान्य होने से कपास की फसल पर कीड़ों का प्रकोप बढ़ रहा है।
आंध्र प्रदेश के प्रमुख उत्पादक इलाकों में फसल पर 'बॉल रोट रोग का प्रकोप तेजी से फैलने की सूचना मिल रही है। अगस्त माह के दौरान लम्बे समय तक मानसून वर्षा का दौर जारी रहने और वातावरण में नमी का अंश बढ़ने से वहां इस तरह का संकट उत्पन्न हुआ है।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार चालू सीजन में कीट का प्रकोप हाल के वर्षों में सबसे भयंकर है और इसलिए कृषि वैज्ञानिक किसानों को केन्द्रीय कपास अनुसन्धान संस्थान द्वारा अनुशंसित समेकित कीट प्रबंधन की सलाह दे रहे हैं।
बॉल रोट कीट कपास की फसल के लिए काफी खतरनाक माना जाता है क्योंकि यह उसे बुरी तरह (रुई के गोले) को क्षतिग्रस्त कर देता है और इससे उपज दर काफी घट जाती है। इसके साथ रूई की क्वालिटी एवं रेशे की लम्बाई भी इससे प्रभावित होती है।
जोधपुर स्थित संस्था- साउथ एशिया बायो टेक्नोलॉजी सेंटर द्वारा कृषि विज्ञान केन्द्र, बनवासी के सहयोग से किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि कुर्नूल तथा रायलसीमा संभाग के अन्य उत्पादक इलाकों में कपास की फसल पर कीड़ों-रोगों का गंभीर प्रकोप बना हुआ है।
बायो टेक्नोलॉजी सेंटर के अध्य्क्ष का कहना है कि पिछले एक दशक में पहली बार कुर्नूल जिले में बॉल रोट रोग का प्रकोप आर्थिक- थ्रेस होल्ड स्तर से आगे निकलकर 20 प्रतिशत की सीमा को पार कर गया है।
लम्बे समय से दक्षिण-मध्य भारत में यह रोग कपास की फसल को आर्थिक दृष्टि से सबसे ज्यादा क्षतिग्रस्त करने वाले रोगों में से एक माना जाता है।
देश में उत्पादित कपास में आंध्र प्रदेश का योगदान 10 प्रतिशत के आसपास रहता है और कुर्नूल जिला वहां इसका प्रमुख उत्पादक केन्द्र है।
इधर पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान में कपास की फसल पर (जस्सीद) रोग का प्रकोप होने की सूचना मिल रही है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर कपास के कुल बिजाई क्षेत्र में इस बार गिरावट देखी जा रही है।