काजू निर्यात पर नजर
05-Apr-2025 11:05 AM

अमरीकी टैरिफ नीति से अमरीका में भारतीय काजू के निर्यात को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है क्योंकि वहां भारत की तुलना में वियतनामी काजू के आयात पर काफी ऊंचे स्तर का सीमा शुल्क लगाया गया है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार अमरीका में भारतीय काजू पर 26 प्रतिशत तथा वियतनामी काजू पर 46 प्रतिशत का आयात शुल्क लागू होगा। इस तरह भारतीय निर्यातकों को सीमा शुल्क में 20 प्रतिशत बिंदु का लाभ मिल सकता है।
ध्यान देने की बात है कि अमरीका में लगभग 90 प्रतिशत काजू का आयात वियतनाम से किया जाता है और केवल 10 प्रतिशत का आयात भारत सहित अन्य देशों में होता है।
वियतनामी काजू की क्वालिटी कुछ कमजोर होती है मगर यह सस्ती कीमत पर उपलब्ध रहता है इसलिए इसका निर्यात ज्यादा होता है।
अमरीका में प्रतिवर्ष औसतन 1.50 लाख टन काजू की खपत होती है और इसका सम्पूर्ण भाग विदेशों से आयात होता है। इसमें अकेले वियतनाम का योगदान 1.30 लाख टन के करीब रहता है जबकि भारत की भागीदारी 7-8 हजार टन के आसपास ही रहती है।
अब इस आंकड़े में बदलाव हो सकता है। यदि भारतीय काजू अपेक्षाकृत सस्ते मूल्य के साथ अमरीकी बाजार में पहुंचता है तो वियतनामी निर्यातकों के लिए चुनौती बढ़ जाएगी।
भविष्य में वहां अफ्रीकी देश भारत को टक्कर दे सकते हैं क्योंकि अमरीका काजू का उत्पादन अभी बहुत कम होता है और इसलिए अगले तीन-चार वर्षों तक भारत के लिए उससे गंभीर चुनौती मिलने की संभावना नहीं है।
इसके अलावा भारत और अमरीका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते के लिए भी बातचीत चल रही है जिसका आरंभिक परिणाम सितम्बर 2025 तक सामने आने की उम्मीद है।
इस समझौते में यदि भारत ने अमरीका को कुछ रियायत दी तो बदले में अमरीका से भी इसकी उम्मीद की जाएगी। भारत से अमरीका को काजू एवं मसाला सहित कुछ अन्य उत्पादों पर सीमा शुल्क एवं गैर शुल्कीय बाधा में राहत मिलने की उम्मीद की जा सकती है। इससे काजू के निर्यात संवर्धन को और बल मिल सकता है।
काजू के वैश्विक निर्यात बाजार में भारत को वियतनाम की सख्त प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है इसलिए हाल के वर्षों में भारतीय काजू के निर्यात में गिरावट आई है।
लेकिन अगले 1-2 वर्षों में अमरीकी बाजार के सहारे इसका निर्यात बढ़ने के आसार हैं। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार भारत से वित्त वर्ष 2022-23 में 35.632 करोड़ डॉलर मूल्य के काजू का निर्यात हुआ था जो 2023-24 में 4.8 प्रतिशत गिरकर 33.921 करोड़ डॉलर रह गया। यह पिछले सात वर्षों का सबसे निचला स्तर था।